जिन्दगी का द्वन्द युद्ध
वाह्य द्वन्दों से लड़ते-लड़ते
अन्तर्द्वन्दों से भी लड़ने लगा,
अनवरत द्वन्द में
स्वयं से ही हारने लगा,
अपने ही तर्को, नियमो,
नितियों और सिद्धांतों को
झुठलाने के लिए,
नये तर्को, नियमों,
नितियों और सिद्धांतों की
खोज करने लगा,
लेकिन जीत कर भी
बार-बार हार गया,
हार जीत की सतत प्रक्रिया में
आहत होने लगा,
लेकिन जब अपने तर्को,
नियमों, नितियों और सिद्धांतों से
दूर हो गया,
जब जाना
कृष्ण के गीता का दर्शन,
स्वयं को केवल
जीता हुआ और शांत पाया।
___राजेश मिश्रा_
Exuberant 🌻🌻
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteVery gopd
ReplyDelete