मेरी उलझन
तुम विषय वस्तु मेरे चिन्तन की,
तुम कारण भी और समाधान भी,
मुझे फिक्र नही प्रतिध्वनियों की,
मेरी उलझन है तरी खामोशी।
ईश्वर दे देता कोई दिव्य अस्त्र,
हम हो जाते हदों को भेद पार,
न होती कोई बांधा की दीवार,
तुम मेरे जीवन में आ जाती,
खुशियो का बनकर बहार।
मिट जाता जीवन का अंधकार,
व्यर्थ के समय को निगल जाता काल,
ढल जाती गमों की रात,
होता एक नव प्रभात।
अनपढा़ न रह जाता तुमसे,
मेरे मन की कोई बात,
मुझसे होकर गुजरती,
तुम्हारे मन की सारी बात।
___राजेश मिश्रा_
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