मेरे स्वप्नों में तुम

धन्य है
वह स्वप्नों का स्वर्णिम क्षण
जिसमें तुम होती हो,
क्षण भर में तुम
कई युगों की खुशियां दे जाती हो, 
कभी अपनी शरारत से
मन को लुभा लेती हो,
कभी मासूम बनकर
मन पर छाए जाती हो,
कभी अपनी अल्हड़ अदा से 
रिझाती हो,
कभी शरमा जाती हो, 
कभी खामोश देखती हो, 
कभी अठखेलियाँ करती हो, 
कभी मुस्कराती हो, 
कभी खिलखिलाकर हंसती हो, 
कभी इशारों में ही कुछ कहती हो, 
कभी बातें खूब करती हो, 
स्वप्नों के स्वर्णिम क्षण में 
मेरे सुने मन को 
अपनेपन का अहसास दिलाती हो, 
तुम जीवन को संग जीने का
विश्वास दिलाती हो। 

   ___राजेश मिश्रा_

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