एक द्वंद चक्र
नजदीक आकर कर जाती है
दिल पर निष्ठुर आघात,
दूर रह कर दिलाती है
मुझको विश्वास,
आखिर यह कैसा है संघात?
किस भाषा में करूं
अपने दिल के
भावनाओं का अनुबाद,
कहीं मेरे भावनाओं में
समाहित न हो जाए
उसका कठोर प्रतिवाद,
यदि मेरे अंदर कोई भ्रम है
तो इस भ्रम में आशा भी है,
आशा के सहारे तो जीवन
कुछ आसान भी हो सकता है,
यदि सत्य में प्राप्त होता है
प्रेम का प्रतिरोध,
कैसे कर पाऊंगा
सत्य का विरोध?
कैसे सहन कर पाऊंगा
प्रेम का प्रतिकार?
फिर तो जीवन
हो जायेगा निस्सार।
___राजेश मिश्रा_
Free mind
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