भटका मनुष्य
अहंकार स्वार्थ में घिरकर
मनुष्य जीवन का प्रायोजन भूल गया,
प्रगति के पथ पर है निरंतर
लेकिन कर्तव्य की परिभाषा भूल गया,
मानवीय गरिमा टूट गयी,
मनुष्य मानवता से विमुख हो गया,
नैतिकता की वलि चढ़ गयी,
धर्म विकृत हो गया,
भोग-विलास की आग में
मनुष्य ने स्वाभिमान को जला दिया,
त्याग भावना पर
लोभ ने अधिकार किया,
जीवन के होड़ में
मनुष्य ने अपनी संस्कृति, सभ्यता छोड़ दिया,
आधुनिकता के तांडव ने
समाजिकता को ध्वस्त किया,
अपनी पहचान बदलकर
मनुष्य ने जीवन का मुल्य बदल दिया,
सच्चाई लाचार हुयी,
विश्वास का ह्रास हो गया,
वर्जनाएं टूट गयी,
मनुष्य ने मर्यादा तोड़ दिया,
संवेदना मृत्यु प्राय हो गयी,
संबंधों का परिभाषा बदल गया,
मादकता के मुल्य पर
मनुष्य ममत्व की वलि है दे रहा,
रिश्ते सभी टूट रहे है,
परिवार है विखर रहा,
व्यापकता को मनुष्य ने
संकीर्णता में उलझा दिया,
आत्मप्रशंसा की व्याकुलता में
मनुष्य ने अवसाद को ग्रहण किया।
___राजेश मिश्रा_
🫱🫱
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