मनुष्य को मनुष्य ही रहने दीजिए
मैं नही चाहता
कोई मुझे मनुष्य से ईश्वर बनाए,
मैं नही चाहता
मेरे अस्तित्व को सीमित किया जाय,
मनुष्य को प्रश्नों से परे न कीजिए,
मनुष्य को आलोचनाओं से दूर न रखीए,
प्रश्नों और आलोचनाओं में निहित है
मनुष्य का विकास,
तर्क ही जन्म दे सकता है
मनुष्य का एक आदर्श इतिहास,
मानवता के लिए
मनुष्य को मनुष्य ही रहने दीजिए,
मनुष्य की सार्थकता को
समझने की कोशिश कीजिए,
मुझे नही चाहिए इतनी ऊंचाई कि
अपनो से दूर हो जाऊँ,
मुझे चाहिए इतनी गहराई कि
अपनो में विलीन हो जाऊँ,
मै चाहता हूँ इतना विस्तार कि
सम्पूर्ण जगत को अपने में समेट लूँ,
मै चाहता हूँ सभी में निहित हो जाऊँ,
मै चाहता हूँ मै मै न रहूॅं,
मै सम्पूर्ण जगत का हो जाऊँ।
___राजेश मिश्रा_
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