इतिहास के सामायिक संदर्भ में मुसलमान और इस्लाम

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इतिहास और वर्तमान का अध्ययन करते हुए मुसलमान और इस्लाम के विषय में विचार किया जाय तो देखा जा सकता है कि मुसलमान इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य रिलीजन, धर्म, सम्प्रदाय, पंत और मत के अस्तित्व को नही पसंद करता है। मुसलमान इस्लाम को न मानने वाले को काफिर कहते है और अपना दुश्मन मानते हैं तथा काफिरों को खत्म करने की बात करते हैं। मुसलमानों का उद्देश्य पुरी दुनियां को इस्लामिक बनाना होता है। मुसलमानों के इस्लाम में मजहबी रूप में कानूनी, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सामरिक पहलू है। किसी भी देश का इस्लामीकरण का प्रारंभ तब होता है जब पर्याप्त मात्रा में मुस्लिमानों कि जनसंख्या हो जाती है और वे इसके लिए उग्रता दिखाने की स्थिति में होते हैं और जब राजनीतिक रूप से गैर मुस्लिम सहनशील समाज मुस्लिमों की कुछ धार्मिक बातों को मान लेते हैं तब उनकी कुछ और मांगें धीरे से आगे आ जाती है। ये इस तरह काम करते है कि कोई समझ नही पाता है। फिर एक ऐसा समय आता है जब मुसलमान ऐसे कानून बनाने की बात करते है कि उनके उपर सिर्फ इस्लामिक शरियत लागू की जाये, क्योंकि मुसलमानों का अंतिम लक्ष्य पुरे विश्व में शरिया कानून लागू कराना है और पुरे विश्व का इस्लामिकरण करना है। 

मुस्लिम जनसंख्या जब तक 2% तक होती है तो मुस्लिम समाज एक शांतिप्रिय समाज होता है जो किसी भी प्रकार से अन्य समाज के नागरिकों के लिए समस्या और खतरा नही दिखाई देता है। 

मुस्लिम जनसंख्या जब 5% के नजदीक पहुंचती है तब ये दुसरे गैर मुस्लिमों का धर्मांतरण प्रारंभ कर देते है। धर्मान्तरण के लिए इनके निशाने पर अक्सर इनके बीच में किसी परिस्थिति के कारण अलग थलग पड़े अन्य रिलीजन, धर्म, सम्प्रदाय, पंत और मत के लोग होते है। 

मुस्लिम जनसंख्या जब 5% से अधिक हो जाती है तो ये अपनी जनसंख्या के अनुपात से ज्याद मांगे रखना शुरु कर देते है। जैसे मजहवी गतिविधियों के लिए जगह की मांग करते है, इस्लामिक स्टडीज की मांग करते है, हलाल के मांस और अन्य उत्पादों की मांग करते है। इनके लिए हलाल के मांस और अन्य उत्पादों के लिए सुपर मार्केट पर अलग से इस्टाल लगाने का दबाव बनाया जाता है, अन्यथा बहिष्कार और आंदोलन की धमकी दी जाती है। इस तरह फूड इंडस्ट्री में इनके लिए जॉब की सिक्यूरिटी हो जाती है। 

मुस्लिम जनसंख्या जब 10% हो जाती है तो स्वयं अपने द्वारा बनायी गयी अपनी बिगड़ी हुई परिस्थितियों के लिये आंदोलन करना शुरू करते हैं और यदि कोई गैर मुसलमान इस्लाम के प्रति असम्मान जताता है तो ये धमकियां देना शुरु कर देते हैं और दंगा भड़काने लगते हैं, हिंसा करने लगते हैं। 

मुस्लिम जनसंख्या जब 20% हो जाती है तो छोटी छोटी बात पर दंगा करना, जिहादी ग्रुप बनाना, आतंकवाद फैलाना, हिंसा करना, आगजनी करना शुरू कर देते हैं। 

जिस देश में मुस्लिम 50% से अधिक हो जाते है उसे इस्लामिक देश बनाने की मांग करने लगते हैं देते है। वहां इस्लामिक शरिया कानून लागू करने की बात करते है। इस्लाम के नाम पर जेहाद करते है और गैर मुस्लिमों का उत्पीड़न और अत्याचार मुसलमानों द्वारा किया जाता है तथा गैर मुस्लिमों के साथ हैवानियत की जाने लगती है। 

जिस देश में मुस्लिम 60% से अधिक हो जाते हैं अत्यधिक संभव है कि वो इस्लामिक देश बना दिये जाते हैं और वहां अत्यधिक संभव है कि इस्लामिक सरिया कानून लागू कर दिया जाता है। गैर मुस्लिमों के साथ इस्लाम के नाम पर मारपीट, हिंसा, लूटपाट, हत्या, आगजनी की जाती है। मुसलमानों द्वारा गैर मुस्लिमों को खत्म किया जाने लगता है। 

जिस देश में मुस्लिम 80% प्रतिशत हो जाते हैं वह इस्लामिक देश होता है और वहां इस्लामिक शरिया कानून लागू होता है। वहां गैर मुस्लिमों के साथ इस्लाम के नाम पर मारपीट, हिंसा, लूटपाट, बलात्कार, हत्या, आगजनी आम बात हो जाती है। गैर मुस्लिमों को झूठे मुकद्दमों में फसाया जाता है। सरकार द्वारा प्रायोजित गैर मुस्लिमों की सामुहिक हत्याएं की जाती हैं, क्योंकि काफिरों को खत्म करना इनकी मूल नीति होती है। गैर मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता खत्म कर दी जाती है। गैर मुसलमानों के धार्मिक स्थलों को जबरन तोड़ा जाता है, लूटा जाता है और आग लगा दिया जाता है। गैर मुस्लिमों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। मुसलमानों द्वारा गैर मुस्लिम लड़कियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन करा कर शादी कर ली जाती है। 

जिस देश में मुस्लिम 100% हो जाते हैं वह पूर्ण इस्लामिक देश होता है। वहां इस्लामिक शरिया कानून लागू रहता है। विद्यालयों की जगह मदरसे होते हैं और  कुरान पढ़ाया जाता है। यहां कुरान ही सब कुछ होता है। चारों ओर इस्लाम का बोलबाला होता है और केवल कुरान सुनाई देता है। लेकिन दुर्भाग्य से शांति कभी नहीं आती। बिना किसी अपवाद के जिस देश में सभी कट्टर मुसलमान रहते हैं वो अपनी खूनी प्यास थोड़े कम कट्टर मुसलमानों के खून से बुझाते हैं।

पुरे विश्व में 1.5 अरब मुसलमान विश्व की जनसंख्या का 22% है। लेकिन इनकी जन्म दर ईसाई, हिंदु, बौद्ध, यहूदी और अन्य सभी, रिलीजन, धर्म, सम्प्रदाय, पंत और मत के मानने वालो से बहुत अधिक है। इस सदी के अंत तक अनुमान है कि मुसलमान विश्व की जनसंख्या के 50 प्रतिशत से ज्यादा होंगे। 

ये बातें डरावने सपने की तरह गंभीर चिंतन के लिए है।

   ___राजेश मिश्रा_

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