जिन्दगी की तश्वीर अधूरी ही रही
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पथरीली आंखें निहारती हैं
कभी सूनी रहो को,
कभी सूने आसमान को,
हर बार एक तेज हवा
उड़ा ले गया मेरे वजूद को,
जीवन के कैनवस पर
जब भी कोई तश्वीर बनाया
उसे उड़ा कर भिगो दिया
हवा के एक झोंके ने,
अपने सपनों को समेट लिया
एक विखरे जीवन ने,
मेरी खुशियां आकार न ले सकीं,
मेरी चाहत साकार न हो सकीं,
जिंदगी की तश्वीर
अधूरी ही रह गयी,
धरोहर के रूप में
केवल स्मृतियाँ बच गयीं,
कुछ शब्द हृदय के सन्नाटे में
छिपे रहे औपचारिक मात्र
केवल यह कहने के लिए
ईश्वर तुम्हारे जीवन में भर दे
खुशियों के सारे रंग,
चाह कर भी कुछ न कर सका
जबकि चाहता था कि भर दूं
उसके जीवन में
खुशियों के सारे रंग।
___राजेश मिश्रा_
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