मेरा एहसास
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जिस दिल मे कभी
तुमने बना लिया था घर,
वह बन चुका है खंडहर,
जहां बसता था
तुम्हारे स्वप्नों का अरमान,
वह हो चुका है विरान,
लेकिन मेरे वजूद में है
अब भी एक एहसास,
जैसे तुम हो आसपास,
हमेशा याद आता है
तुम्हारा छुप कर इशारा करना,
और मुस्करा देना,
वो प्यार की बातें
और जुल्फों से खेलना,
अठखेलियां करना,
और खिलखिला कर हंसना,
बातों ही बातों में शर्म से
चेहरे को छुपा लेना,
नजरे झुका करके
मेरी बाहों में सिमट जाना,
तन्हाई के सन्नाटे में ऐसा लगता है
जैसे तुम्हारे हाथों की उड़ियां
कहीं खनखना रही है,
तुम्हारी हंसी कहीं खिलखिला रही है,
तुम्हारे पायल की झनकार
तुम्हारे कदमों के आहट में
छुप कर आ रही है,
कभी-कभी ऐसा लगता है
कहीं से तुम्हारी आवाज आ रही है,
मै अचानक
तुम्हारा नाम ले उठता हूँ,
फिर एकाएक सब कुछ
सन्नाटे में गुम हो जाता है।
___राजेश मिश्रा_
बहुत प्यारी कविता , मन को छू गयी
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