आहत करते अर्थ भाव
कह रहे हो शंखनाद है यह क्रांति का,
बजा रहे हो बिगुल युद्ध का।
कर रहे हो उद्घोष शांति का,
दिखा रहे हो भय शक्ति का।
नंगा ताण्डव कर रहे हो,
बात सृजन की कर रहे हो।
स्वयं भू तुम बन रहे हो,
जीवन को ही रौद रहे हो।
छीन रहे हो सबका उल्लास,
बदल रहे हो शब्द विन्यास।
अर्थ का अनर्थ बनाकर कर रहे हो विनाश,
कर रहे हो सृष्टि का उपहास।
कर रहे हो मनमाना परिवर्तन,
चीख रही है उत्पीड़न।
सन्नाटे में है पिड़ीत क्रन्दन,
जबरन करा रहे हो अभिनन्दन।
क्या तुमने सोचा कभी ?
आहत हो रही है जन जन की अभिलाषा।
क्यो थोप रहे हो सबके उपर ?
तुम अपनी प्रत्याशा।
क्यो बना रहे हो तुम ?
अपने स्वार्थ की सारी परिभाषा।
क्या तुम बन सकते हो ?
ब्यथितो के खुशियों की आशा।
___राजेश मिश्रा_
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