एक अतृप्ति
मेरे मन में घेरे रहती है,
तुम्हें पाने की,
तुम्हारे मन को छूने की प्रत्याशा,
संतप्त शुष्क जीवन है,
बिखरी है खुशियों की आशा,
मन में रहती है,
तुमसे कुछ कहने की अभिलाषा,
लेकिन जब तुम पास आती हो,
शब्द दूर चले जाते हैं,
तुम्हे देखने मात्र से ही
अतृप्त भाव तृप्त हो जाते है,
तुम शीतल समीर का झोंका बनकर
मन को छू जाती हो,
खामोशियों में भी
मेरे अन्तः करण को शान्त कर जाती हो,
लेकिन जब तुम
नजरो से ओझल हो जाती हो,
अतृप्त भाव जाग उठते है,
जीवन विरान लगता है,
मै एक चिंतक की तरह
शुन्य में भटक जाता हूँ,
अपने ही प्रतिध्वनियों में उलझ जाता हूँ,
तुमसे दूरियों का एहसास मात्र
मेरे स्वप्नों को तोड़ जाता है,
मन में एक तड़प छोड़ जाता है।
___राजेश मिश्रा_
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