अतीत कें बोझ से दबा वर्तमान
जब स्वप्न विचरने लगते है
अतीत की गलियों में,
अतीत कें बंद हो चुके दरवाजे
खुल जाते हैं,
जब खड़खड़ाने लगते है,
अतीत के पन्ने,
अतीत की स्मृतियाँ
जीवन्त हो उठती है,
वर्तमान अतीत के बोझ से दबकर
कराहने लगता है,
तमाम दबी हुई अवाजे
शोर मचाने लगती है,
सन्नाटा भी चीखने लगता है,
तुफान उठ जाता है मन में,
हलचल होने लगती है हृदय में,
चाहता हूं उस अतीत से विच्छेद,
लेकिन नही कर पाता उसका निषेध,
एक स्वप्न से दुसरे स्वप्न के बीच जीता हूं,
सत्य को जानते हुए भी
स्वप्नों से दूर नही हो पाता हूं
अनवरत जीवन जो स्वप्नों में जी चुका हूं,
हमेशा खुशियों की नयी आशा
स्वप्नों में लिए रहता हूं,
कभी-कभी दिग्भ्रमित कर देते है
सत्य और स्वप्न,
सत्य से ही जूझने लगता हूं,
अतीत में भविष्य के स्वप्ने थे,
वर्तमान में भविष्य के स्वप्नों के साथ
अतीत की यादे भी है,
जीवन एक स्वप्नो का जाल है,
जीवन कितना विचित्र है,
सत्य स्वप्नो में उलझा हुआ है।
___राजेश मिश्रा_
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