मुजरिम मै तन्हा कहलाया
https://rajeshmishrathoughtmedia.blogspot.com
अगर खता हमने की
तो खता उनकी भी थी,
लेकिन मुजरिम मै तन्हा कहलाया,
मेरे हर कदम के साथ
कदम उनका भी था,
लेकिन सजा केवल हमने ही पाया,
वो चाहत तो मेरी थी ही,
लेकिन रास्ता उन्होंने ही था दिखाया,
मेरा हर अंदाज उन्हें भी पसंद था,
वरना उनके साथ इस सफर में
बगैर उनकी मर्जी के
इतनी दूर कैसे होता आया?
माथे पर सोंच, आंखों में आंसू,
लबों पे खामोशी,
और दिल में दर्द रहता है,
एक लम्हें की सजा
पुरी जिंदगी को मिल गई है,
कोई पुछता है मुझसे मेरा हाल,
मैं उनके ख्यालों में खो जाता हूँ,
वो हर बात से अनजान
कैसे बन गयी?
अपने कसमों और वादों को
वो कैसे भूल गयी?
मै अक्सर सोचता हूँ।
___राजेश मिश्रा_
Comments
Post a Comment
Follow me and stay connected with me.