बात हमेशा अनकहा रह गया

कहा तो बहुत कुछ 
लेकिन अपनी बात नही कह पाया, 
दिल की बात को
कोई शब्द नही मिल पाया, 
जब भी कुछ लिखा 
लिखते-लिखते जैसे इतिहास 
लिख दिया,
लेकिन जो कहना था 
वो हमेशा अनकहा रह गया,
मेरे दर्द की ऋचाएं 
इतनी मधुर और मर्मज्ञ नही कि
किसी को सीधे शब्दों में सुना सकूँ,
मेरे पास विरस और निस्सार 
जीवन के अतिरिक्त कुछ भी नही
जो किसी को दे सकूँ,
क्या मेरे हृदय के विरान आंगन में
कोई झांककर देख सकेगा
मेरे जीवन के सूनेपन को? 
क्या कोई स्वीकर कर पायेगा 
मेरे जीवन के सत्य को? 
इस जीवन में है 
एक अनवरत पीड़ा का 
अविराम सिलसिला, 
इसीलिए मेरे शब्दों का रूप है 
बदल जाता, 
चाहकर भी बात 
कनकहा रह जाता। 

   ___राजेश मिश्रा_

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